बापट पुराण
1993 ..शायद अगस्त का महीना होगा .. बरसात का सीज़न शुरू हो चुका था। GSITS में अपना बैच अब 2nd ईयर में आ गया था ..यानि 3rd सेमेस्टर!! ...हम सभी 4 नम्बर हॉस्टल से 3 नम्बर हॉस्टल शिफ्ट हो चुके थे। उस समय तक हॉस्टल बिल्डिंग्स के नाम नही थे, केवल 1 से 4 तक नम्बर ही नाम थे। शायद जीएसआयटीएस के इन हॉस्टलों में कॉलेज की स्थापना के बाद से इतने सारे महापुरुष लोग रह चुके थे कि कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन को कोई और इनसे बड़ा महापुरुष मिला ही नहीं … तो उन्हें नाम की जगह सिंपल नम्बर प्रयोग करना ही ठीक लगा।
हम लोग नए-नए सीनियर्स बने थे और 97 बैच के जूनियर्स 4 नम्बर हॉस्टल में रहने आ चुके थे। कुछ दिनों तक हमारी मेस में ही खाना खाने के बाद अब फर्स्ट ईयर की सेपरेट मेस उन्हीं के हॉस्टल में शुरू हो चुकी थी। हॉस्टल की मेस चलाने के लिए 5 जूनियर्स की एक मेस कमेटी बनी, जिसमे चाऊ, लड्डु, असनानी, बुन्देली, और प्रदीप थे। गल्लू और चीमा मेस सेक्रेटरी बनाए गए थे। इन्हीं का काम था मेस के लिए ग्रॉसरी, सब्जी लाना और कुक/हेल्पर की सैलरी देना। ऑल इन ऑल ये एक थैंकलेस सर्विस जैसा था। मेस चला और गाली खा, यह हरेक हॉस्टल के मेस की कहानी थी। हालांकि कुछ मेस सेक्रेटरी ऐसे कलाकार भी थे कि वो थोड़े पैसे बचा लेते थे अपने लिए।
खैर, एक सन्डे को हम लोगों अपनी मेस में खाना खा रहे थे। खाना-वाना निपटा कर हम अपनी मुट्ठियों में सौंफ भरकर मेस के बाहर कॉरिडोर में फोकटाई वाली बकर में व्यस्त थे। बकर की हमारी इस महफ़िल को चीरता हुआ एक जूनियर दौड़ कर आया। अब इमरजेंसी कैसी भी हो, हॉस्टल के संस्कार ऐसे कि बन्दे ने आते ही "गुड़ आफ्टरनून सर" वाला सेल्यूट ठोका और बोला "वो सर, वो बापट बेहोश हो गया है"। हम सभी 4 नम्बर होस्टल की ओर दौड़े .. अफ़रातफ़री सी मच गई। अपने कमरे में बापट बेहोश सा लग रहा था, और उसके चेहरे के हाव-भाव देख कर लगा कि इसे हॉस्पिटल ले जाना पडेगा। किसी ने कहा "प्याज काट के पैर के तलवों में रगड़ो", ऐसे मौके पर अक्सर कही जाने वाली लाइन कि "जूता सुंघाओं जूता" भी सुनाई दी, एक बोला "पानी के छींटे मारो"। तभी गुड्डू भाई बोले "मे बता रिया हूँ खाँ, इसको वो दो ..वोsss"। सभी लोग गुड्डु भाई की ओर देखने लगे। गुड्डू भाई जो कहना चाहते थे वो उनके दिमाग में तो था पर उसका नाम उनको याद नहीं आ रहा था। बापट को भूल कर अब सभी गुड्डू भाई के साथ डम्ब शरेड्स खेलने लगे। गुड्डू भाई ने अपने चहरे, होंठ और हाथों से इतना खतरनाक पोज़ बनाया कि कई लोग एक साथ बोले "वो माउथ टू माउथ ब्रीदिंग?"। गुड्डू भाई ने सबकी ओर हाथ कर चुटकी बजाई और शातिराना अंदाज़ में विजयी भाव से मुस्कुराते हुए बोले "एग्जेक्टली!!"। गुड्डू भाई की यह बेबाक और बोल्ड सलाह सुनते ही सब जूनियर्स खीं-खीं कर के हँस दिए। बापट शायद सब सुन रहा था, वो घबराकर खुद ही बोल पड़ा "पेट मे अनईज़ी सा लग रहा है, डॉक्टर को दिखा लेते है"। बापट की बात सुन कर हम सभी को यह तसल्ली हुई कि मामला उतना सीरियस नहीं है।
लाला ने जल्दी से एक जूनियर को ऑटो लाने के लिए कहा। वो लड़का चार नम्बर हॉस्टल से निकल कर शॉर्ट-कट के चक्कर में सामने फुटबॉल ग्राउण्ड में घुस गया। बारिश का मौसम और मालवा की काली मिट्टी ..वही हुआ जो होना था .. उसकी चप्पलों के नीचे मिट्टी के लोंदे चिपक गए। इंदौर यूँ ही डेवलप नहीं हो गया, यहां की मिट्टी की पॉवर-ऑफ-ट्रांन्सफॉरमेशन देखिये, छत्तीसगढ़ के गाँव-देहात का वह लड़का, प्लेटफॉर्म-शू पहनी लेड़ी गागा बन गया। चप्पल को मिट्टी से अलग करूँ या मिट्टी को चप्पल से? इस उलझनभरी खींचतान में चप्पल की स्ट्रिप ही टूट गई। पन्ना नरेश केके हॉस्टल के गेट से चिल्लाया - "अबे @#$के, उते ग्राउण्ड में काए घुस रऐ, इते डम्बर की सरकारी सड़क का @# @#$%ने के लाने बनी है का?" जूनियर बेचारा अपनी टूटी चप्पल हाथ मे लिये झेंपता हुआ वापस हॉस्टल के गेट पर आ गया। मिशन ऑटो के लिए अब दूसरे जूनियर को भेजा गया। वो सड़क-सड़क से होता हुआ लैंटर्न चौराहे की ओर दौड़ता हुआ गया।
कुछ जूनियर्स की बापट के पास ड्यूटी लगा कर हम लोग 4 नम्बर हॉस्टल के बाहर बनी पानी की टंकी पर आ गये। इतने में 3rd ईयर के कुछ सीनियर्स भी आ गए ..हम लोगों ने उनको बापट की तबीयत के बारे में ब्रीफ किया तो वो लगे ठाँसने हमको .. " @#$% जूनियर्स का ध्यान नहीं रखते हो, कैसे सीनियर हो ..थोड़ा केयरिंग बनो @#$& ..लगता है &%$# तुम लोगो की भी जीआर लेनी पड़ेगी ..बहुत हवा में हो तुम लोग"। सीनियर्स शायद भूल गए कि वो तो किसी काम से जा रहे थे .. वो वहीं खड़े हो गए और आपस में टीम स्पिरिट दिखाते हुए उन्होंने कलेक्टिवली बहुत सारा पेरेंटिंग गाइडेंस हमारे ऊपर फेंकना शरू कर दिया। ऐसा लगा कि डॉ बेंजामिन स्पॉक्स खुद हमारे सामने खड़े है और अपनी बेबी एंड चाइल्ड केयर किताब के पन्ने फाड़-फाड़ कर हमारी तरफ उड़ा रहे है।
"ऑटो आ गया सर! ऑटो आ गया" वॉलीबॉल कोर्ट के कॉर्नर की तरफ से एक ऑटो आता देख कर एक जूनियर चिल्लाया। बॉलीवुड की फिल्मों में जैसे "बारात आ गई, बारात आ गई" ऐसी आवाज के साथ वधु पक्ष की लड़कियाँ दौड़ लगाकर दुल्हन को यह बात बताने जाती है, उसी प्रकार कुछ जूनियर बापट के कमरे की ओर भागे। 4 नम्बर हॉस्टल के बाहर खड़े हम सभी उस ऑटो को पुष्पक विमान वाले श्रद्धाभाव से देखने लगे। वह ऑटो डुग्ग-डुग्ग कर के उतना ही धीरे चलता लग रहा था जितना कि 15 हजार फीट पर उड़ने वाला हवाईजहाज नीचे ज़मीन से दिखता है। ऑटो फुटबॉल ग्राउंड के किनारे तक आया लेकिन हॉस्टल की ओर न मुड़ कर, स्टाफ़ क्वार्टर की ओर चला गया। "किस #$%@ को भेजा है बे ऑटो लाने? इतनी देर हो गई, @#%$ आया नही अभी तक" बब्बा ने झुंझलाते हुए कहा। लेकिन इस ऑटो के कारण जो डिस्टरबेंस हुआ, उसका ये फायदा मिला कि डॉ बेंजामिन स्पॉक्स के अवतारों से हमें मुक्ति मिल गई। उन चारों-पांचों सीनियर्स को ये याद आ गया कि वो किसी काम से जा रहे थे। "किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा लो इसे, और कोई सीरियस बात हो तो हमें बताना" ऐसी सलाह देकर वो सीनियर्स आगे चले गए।
बापट के मुंह से पेट खराब होने की बात सुन कर और उससे भी ज्यादा सीनियर्स द्वारा ठाँसे जाने से झल्लाए हमारे बैच के कुछ लोगों ने जूनियर बैच के दोनों मेस सेक्रेटेरी और पांचों कमेटी मेम्बर्स को बुला लिया। "तुम लोग @#$&के सस्ता अनाज, तेल वगैरह लाते हो जिसकी वजह से बापट की तबियत खराब हुयी" इस आरोप के साथ कुटाई-पिटाई शुरू हो गई। जूनियर लोग समझाने की कोशिश करते रहे की सर हम तो वो ही सब लाते हैं, जो आप लोग लाते हो , क्वालिटी भी सही है। पर जूनियर पहले 6 महीने राजपाल यादव जैसा होता है, जिसे मंदिर में लटके घंटे की तरह कोई भी सीनियर, कभी भी बजा जाता है।
थोड़ी ही देर में वो ऑटो भी आ गया जिसे लाने जूनियर गया था। ऑटो वाले ने ऑटो घुमा कर 4 नम्बर होस्टल के गेट पर खड़ा कर दिया। कुछ जूनियर बापट को ले कर आ गए और ऑटो में उसको बिठाया। ऑटो वाले ने पूछा "एम. वाय.?"। एम. वाय. यानि इंदौर का सरकारी हॉस्पिटल। एम. वाय. का नाम सुनते ही एक टरकाऊ बहस शुरू हो गई। "यार मुझे एक अर्जेंट असाइनमेंट पूरा करना है, कल सबमिशन है" .. "मेरे को अपने लोकल गार्जियन के घर जाना है" .. "मेरे सिर दर्द है यार सुबह से, हल्की हरारत सी भी है" इस तरह के एक्सक्यूजेस आने लगे। इसी बीच कौशिक ने ऑटो वाले को बोला "एम. वाय. नहीं जाना, चरक हॉस्पिटल जाना है"। रानी सती गेट के पास एक चरक हॉस्पिटल था। हॉस्टल के सबसे पास शायद वो ही हॉस्पिटल था।
चरक हॉस्पिटल का नाम सुनते ही हवा बदल गई। चरक हॉस्पिटल की रिसेप्शनिस्ट और वहां की नर्सों के चेहरों के गुब्बारे सबके मन में उड़ने लगे। अब क़ाय का असाइनमेंट ओर कौन से लोकल गार्जियन? ऑटो झट से ओवरलोडेड हो गया। कुछ तो भाग के अपने रूम में गए और शर्ट बदल कर, कंधी-वंघी कर के राजा बेटा बन के आ गए। ऑटो की पिछली सीट पर लेटे हुए बिचारे बापट को लोगों ने एक साइड खिसका दिया और जो जहां बैठ सकता था या अपने शरीर का जितना हिस्सा ऑटो में ठूँस सकता था, ठूँस दिया। आगे ऑटो वाले के दोनों तरफ, उसके पीछे मीटर वाले पार्टीशन पर, साइड वाले सेफ्टी बार पर और पीछे की सीट पर .. सब लोग किसी लिक्विड मटेरियल की तरह उसी शेप में फिट हो गए जिस शेप की जगह उनको मिल पाई। ऑटो वाला ऑटो छोड़ कर साइड में खड़ा हो गया "भिआ ये आटो है आटो, नगर सेवा का टेम्पो नी हे"। मामा ने ऑटोवाले को बापट की तबीयत का वास्ता दिया। मामा की रिकवेस्ट के कारण और उससे भी ज्यादा अपने आप को बॉयज़ हॉस्टल में घिरा देख कर ऑटोवाले का मन बदल गया। ऑटो में आगे बैठे लड़के उतर गये। ऑटोवाले ने पायलट सीट पर कब्ज़ा जमाया। ऑटो से उतरे लड़के को-पायलट के भाव से फिर से ऑटोवाले के दोनों तरफ़ सेटल हो गये। ऑटो वाले ने जैसे-तैसे लीवर खींच के ऑटो स्टार्ट किया और गियर डाला। जो लोग खुद को ऑटो के अंदर पूरा नहीं घुसेड़ पाए, उनकी कलरफुल शर्ट, टीशर्ट, पेंट, बरमूडा और टोपी के कारण ऑटो बाहर से एक गुलदस्ते जैसा लग रहा था। अपने पीछे डीज़ल और केरोसिन के कॉकटेल धुंए को छोड़ता हुआ वह बुके रूपी ऑटो अपने मिशन के लिए टेक-ऑफ़ कर गया।
एम.ई. होस्टल के सामने से होता हुआ ऑटो केंटीन के पास से लेफ्ट मुड़ा, फिर बास्केटबॉल/वॉलीबॉल कोर्ट और फुटबाल ग्राउंड के बीच की सड़क पार करने के बाद फिर एक लेफ्ट ले कर जैसे ही राइट मुड़ा, सभी ऑटो यात्री जंगल सफ़ारी के टूरिस्ट वाले मूड में आ गए। यदि गर्ल्स हॉस्टल को किसी नेशनल पार्क का कोर एरिया मान लें, तो सड़क का यह हिस्सा उस नेशनल पार्क के बफर ज़ोन जैसा था। इस सड़क पर बीच में एक लेफ्ट कट था, जिस पर काली कोठी के बाद कोर एरिया शुरू हो जाता था। इसलिए यहाँ गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों के दिखने की संभावना रहती थी। सभी लोग ऑटो के बाहर ताकने-झांकने लगे। वैसे तो ऑटो दोनों ओर से खुला ही होता है, फिर भी किनारे पर बैठे/लटके लोग विंडो सीट मिलने के सायकिक सेटिस्फेक्शन के कारण ज्यादा खुश थे। ऑटो में बैठे लोग बीच-बीच में ये भी चेक कर लेते थे कि बाक़ी लोगों की नज़रें कहाँ है? मतलब ऐसा न हो कि किसी को इधर कोई दिख जाए और हम यहाँ-वहाँ देखने के चक्कर में चांस मिस कर दें। पर जैसा कि अक्सर बांदीपुर, कान्हा या पेंच में होता है, इट टर्नड आउट टू बी एन अनलकी डे। सन्डे आफ्टरनून के कारण शायद सभी लड़कियां हॉस्टल में ही थी। उस सड़क पर दिखे तो स्पोर्ट्स टीचर चंद्रावत सर, ओर उनको देखते ही ऑटो से बाहर झाँकते सारे बॉडी-पार्ट्स ऐसे ऑटो के अंदर चले गए जैसे कछुआ ख़तरा महसूस होने पर अपने हाथ-पैर-गर्दन अपनी शैल में छुपा लेता है।
ऑटो ने कॉलेज का गेट पार किया और यशवंत निवास रोड़ पर लेफ्ट लेकर मालवा मील की तरफ मुड़ गया। थोड़ी फ्रेश हवा आरपार हुई ही थी कि ऑटो में किसी ने गैस पास कर दी। इस बिना वॉर्निंग के हुए साइलेंट केमिकल हमले ने हाहाकार मचा दिया। हॉस्टल की मेस में सन्डे फीस्ट खाने के बाद इस वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन को झेलना हमारे शौर्य-पराक्रम की पराकाष्ठा ही थी। कैमिस्ट्री और फिजिक्स के सारे नियम फेल हो गए क्योंकि गैस होते हुए भी इसकी डेन्सिटी इतनी ज्यादा थी कि चारो ओर से खुले हुए ऑटो में भी वो ठहर के ही रह गयी। इस फ़िदायीन हमले के बाद हम सभी एक दूसरे को शक की निगाह से देख रहे थे। ऑटो वाले की हालत तो हिरोशिमा के उन जापानी सोल्जर्स जैसी थी जिन्होंने अपने सामने एटम बम गिरते देखा था। ऑटो ड्राइवर ने अपनी टीशर्ट को उचका कर अपनी नाक पर रख लिया और ग़ुस्से में ऑटो की स्पीड बढ़ाते हुए बोला "यूनियन कारबाइड वाली गेस लीकेज के टेम पे मैं भोपाल में ही रे रिआ था, बोत जने निपट गए थे भिआ"। ऑटो ड्राइवर की यह बात सुनते ही किसी ने रूमाल निकाल लिया, तो कोई बाहर झांकने लगा। रज्जू भैया ऑटो में ऐसी जगह फंसे हुए थे कि जेब से रुमाल निकाल पाना तो दूर, अपने हाथों को नाक तक भी पहुंचा नहीं पा रहे थे। शोले फ़िल्म के ठाकुर साहब को डे-टु-डे लाइफ में कैसी-कैसी प्रेक्टिकल परेशानियां झेलनी पड़ती होंगी? आज रज्जू भैया को इसकी अनुभूती हुई। असहाय से रज्जू भैया जोर से चिल्लाए ओर उन्होंने एक स्टेंडर्ड बद-दुआ सभी की ओर उछाल दी "जिस &@$# ने भी ये किया है, उस @#$%& का पेपर रुकेगा इस सेमेस्टर में!! देख लेना.."। ऑटो ड्राइवर को छोड़कर बाक़ी सभी लोगों ने तुरन्त ही मन ही मन काउंटर प्रेयर की और अपने आप को इस बद-दुआ से सिक्योर किया।
ऑटो रानी सती गेट से अंदर मुड़ा और सीधे चरक हॉस्पीटल के सामने जाकर रुका। रिसेप्शनिस्ट और नर्सों के चक्कर मे आये लड़के "तू तेरा, मैं मेरा" के निर्विकार भाव से ऑटो से उतर कर सीधे हॉस्पीटल में ऐसे चले गए जैसे यात्री सरकारी बस से उतर कर जाते है। बापट को ऑटो में अब फिर से लेटने लायक जगह मिली। कौशिक, विज्जु भाई और रज्जू भैया ने बापट को उठाया और अस्पताल के अंदर ले गए। ऑटो वाला बोला "20 रुपये हो गए"। कई लोगों ने अपनी-अपनी जेब में हाथ डाला। लाला, बब्बा और फ़ारूक़ी ने मिला कर 20 रुपये ऑटो वाले को दिए। बाक़ी लोग अपनी बैक-पॉकेट मे हाथ डाल कर पिछवाड़ा खुजाते रहे, पर उन्होंने वॉलेट या पैसे बाहर नहीं निकाले।
हमलोग दौड़ कर हॉस्पिटल के अंदर गए। बापट को कैजुअल्टी रूम में लिटाया हुआ था। तुरन्त ही डॉक्टर आ गए ..उन्होंने स्टेथेस्कोप से चेक-चूक किया और हम लोगो से पूछा, की क्या हुआ इसे? हम लोग सारे डिटेल्स डॉक्टर को बता ही रहे थे कि बापट बेड से उठ गया और उसने हाथ से वोमेटिंग का इशारा किया ... नर्स दौड़ कर गई और एक तसला ले आयी ..एक होता है टिपिकल सा तसला अस्पताल में ..सफ़ेद रंग का, नीली बॉर्डर वाला। डायरेक्टली या इनडायरेक्टली सभी लोग नर्स को ताड़ रहे थे, नर्स बापट को देख रही थी और बापट तसले को देख रहा था। इस प्रकार के मल्टी चेकपॉइंट मोनिटरिंग सिस्टम के भरोसे पर बापट ने भरभराकर उल्टी कर दी .. उस उल्टी में सबूत के सबूत छोले निकले ..और कई छोले तो तसले की बॉर्डर पर टिप्पा खा कर टन्न-टुन्न की आवाज करके तसले के बाहर उछल आए ... डॉक्टर, नर्स और हम सभी उल्टी के छींटों से अपने जूते/चप्पल और पेन्ट/जीन्स बचाने के लिए उचक के पीछे हो गए .. पूड़ी के इतने बड़े-बड़े टुकड़े निकले की उनसे जिगसॉ पज़ल टाइप फिर से गोल पूड़ी बना सकते थे। वोमेटिंग की क्वांटिटी देखकर हरबीवोर्स का 4 चेम्बर वाला डायजेशन सिस्टम याद आ गया। बापट ने सिस्टम के पहले चेम्बर में ठूँसे गए सामान को हमारे सामने बिछा दिया था। बचपन में मोहल्ले में आने वाला वो बाज़ीगर भी बापट में दिखा जो पेट से लोहे के गोले, तलवार, चाकू और सीटी निकाल के दिखाता था। एब्स्ट्रैक्ट आर्ट के रूप में बापट ने एक बड़ी सी रंगोली फ्लोर पर बना दी थी। वोमेटिंग पैन उस रंगोली के बीच मे ऐसे रखा था जैसे कोई सजावट के लिए पीतल का बाउल पानी भर कर रखा जाता है। छोले, पूड़ी के टुकड़े, अनार के दाने, किशमिश बन चुके अंगूर उस बाउल में ऐसे लग रहे थे जैसे फ्लोटिंग फ्लॉवर और लैम्प तैर रहे हो। उस समय इंडिया-गॉट-टेलेंट टाइप्स का शो होता तो बापट जरूर टीवी पर दिखता। डॉक्टर चिल्लाया "चबा चबाकर खाया करों!!!! .. इट्स ब्लडी केस ऑफ ओवर ईटिंग"। डॉक्टर की खिसियाई सी आवाज सुनकर हम परफॉर्मिंग आर्ट्स की दुनिया के वर्चुअल मैट्रिक्स से बाहर निकल आये।
बापट की बीमारी का सस्पेंस खत्म हो चुका था। विज्जु भाई ने जासूस करमचंद की तरह एक और राज खोला - "@#$& ऑटो में इसी ने मारी होगी"। सभी ने एक साथ विज्जु भाई की बात पर सहमति दिखाई और अपने आप को ऑटो में हुई विनाशकारी दुर्घटना से दोषमुक्त कर लिया।
जैसे मेजर अर्थक्वेक के कुछ देर बाद 2-4 छोटे झटके आते है, उसी साइज़्मोलॉजी के हिसाब से बापट ने 2-3 उल्टीयाँ ओर की ..और बोला ..अब ठीक लग रहा है ... हम सभी ने राहत की साँस ली, लेकिन हँसी रोक पाना मुश्किल हो रहा था। नर्स और रिसेप्शनिस्ट के चक्कर में आये लड़के फिर से अपनी-अपनी पोजिशन पर एंगल सेट कर खड़े हो गये। बापट उस दिन हॉस्पिटल में एडमिट रहा, उसे ड्रिप वगैरह लगी। डॉक्टर ने कुछ दवाइयाँ लिख कर दी और फिर हम लोग बापट को वापिस हॉस्टल ले कर आए।
दो दिन में बापट बैक टू नॉर्मल हो गया। फिर कुछ दिन बाद जब रात को जीआर हुई तो बापट की एक्स्ट्रा सुटइया लगाई गयी। तब जा के बेफालतू में पिटने वाले मेस कमिटी मेम्बर्स के मन को थोड़ी राहत हुई, पर अंदर ही अंदर वो सारे तिलमिलाए हुए तो थे ही।
हॉस्टल में सीनियर-जूनियर और अपने बैचमेट के साथ रिश्ता गूंगे के गुड़ जैसा होता है। इसे आप महसूस कर सकते है, पर शायद एक्सप्लेन नहीं कर सकते। 3 बैच सीनियर्स के, 3 बैच जूनियर्स के और लास्ट बट नॉट द लिस्ट, 1 अपना खुद का बैच। 4 साल में टोटल 7 बैच के 700+ लोगों से हुए इंटरेक्शन के बारे में आज सोचने पर पान सिंह तोमर मूवी का इरफ़ान का डायलॉग याद आ जाता है - "साब, हम तो चौथी कक्षा फेल हैं. अभी हम तो किताब कम, आदमी ज़्यादा पढ़े हैं"
भाई!!! पैरेंटल गाइडेंस वाले सीनियरों के नाम कहे छोड़ दिए!!! बाकी सब के लिखे हो तो उनके भी लिख देते !!!
ReplyDeleteJust Wonderful, feeling like a live Telecast. JT 1999 batch.
ReplyDeleteGreat narrative skillss..
ReplyDeleteFkashbskc, beautifibea written!
ReplyDeleteBeautiful, flashback
ReplyDeleteक़िस्सागोई में अभी तो जाने कितने अफसाने होंगे, बहुत दिलचस्प सफर में ले गए निरूपम भाई ..पूरी फिल्म दिखा दी ...जिनका जिनका जिक्र हुआ है वे फिर जवान हो गए होंगे .. जरूर
ReplyDeleteवाह दिलचस्प दृश्यांकन...
ReplyDeleteAwesome writeup
ReplyDeleteBadiya. Nice style.
ReplyDeleteVery nicely written. Interesting style.
ReplyDeleteवाह वाह क्या किस्सा है शानदार भाई
ReplyDeleteमजा आ गया निरुपम भाई हंसी नही रुक रही
ReplyDeleteBeautifully written. Great writing skills. Just like live telecast. Each and every word is chosen correctly and description is 100% realistic.
ReplyDeleteBahut badhiya, .. it was so good ki do baar padha hai..
ReplyDeleteबहुत शानदार सर कॉलेज की यादें और छिछोरे मूवी जैसी छवि दिखाई देने लगी 🤩👍
ReplyDeleteToo good Nirupam :)
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