ताकाझांकी

कॉलेज का हॉस्टल यदि शहर के बीचोंबीच हो तो हॉस्टल की छतों से और कमरों की खिड़कियों से ताकने झाँकने के लिए आसपास काफ़ी कुछ रहता है।


फ़ील्डिंग और जगलिंग

हॉस्टल के पीछे की कॉलोनी में दो लड़कियां रोली और हेमा रहती थी।  उनके घर हॉस्टल की बाउन्ड्री वॉल से सटकर एक ही लाइन में कुछ मकान छोड़ कर थे। दोनों अच्छी सहेलियां थी और शायद गुजराती कॉलेज में पढती थी। वो मिलकर डबल्स टीम टाइप्स या तो रोली के घर से या हेमा के घर से स्ट्रेटेजिक पोजिशन बना कर मोर्चा सम्हालती थी। कभी-कभी वो अपने-अपने घरों से ही सिंगल्स टूर्नामेंट भी खेलती थी। कई लड़के हॉस्टल की छत से या सेकेंड फ्लोर की खिड़कियों से उनकी फील्डिंग करते थे। जैसे फ्लाइट टेकऑफ़ के जस्ट पहले सेफ्टी इंस्ट्रक्शन देती एयर हॉस्टेस को देख कर हर मेल पैसेंजर को ये लगता है कि एयर हॉस्टेस एक्सक्लुसिवली उसी की ओर देख रही है, उसी तरह इन सभी फील्डरों को यह विश्वास होता था कि वो दोनों केवल और केवल उन्हीं की ओर देख रही है। लड़कों के इस मुग़ालते को बनाए रखने के लिए कब किसकी ओर देखना है, किसे इग्नोर करना हैं, किसे इशारों से उलझा के रखना है, किसको आंख दिखाना है, किसे कनखियों से देखना है, और इन सब के बीच पीछे से घरवालों की आहट आने पर खट से किताब खोल कर पढ़ने लगना, ऐसी कई स्मार्ट टेक्निक्स में उन दोनों को महारत हासिल थी। सेकेंड ईयर में डाटा स्ट्रक्चर पढ़ते समय ऐसा लगता था कि फर्स्ट इन फर्स्ट आउट, लास्ट इन फर्स्ट आउट, प्रायोरिटी बेस्ड एनक्यू/डीक्यू के टेक्निकल फंडे चार्ल्स लियोनार्ड हम्बलिंग इन दोनों लड़कियों से ही सीख कर गया है। 


हॉस्टल की छत के अलग-अलग कोनों पर खड़े 5-6 आशिकों, सेकंड फ्लोर की खिड़कियों से झाँकते 8-10 छर्रों के साथ-साथ अपने खुद के घरवालों को झांसा देने के लिए विदिन-रीच रखी 2-3 किताबें, इन सारे लिविंग और नॉन-लिविंग आइटमों की इतनी शानदार जगलिंग तो कोई प्रोफेशनल जगलर ही कर सकता था। ऐसे कॉम्प्लेक्स एनवायरमेंट में भी रोली और हेमा सभी को बिना किसी भेदभाव के अन-बायस्ड अटेंशन देती थी। थर्ड ईयर में कम्प्यूटर साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर साठे जब डायनोसॉर के चित्र वाली ऑपरेटिंग सिस्टम्स की किताब की फोटोकॉपी से जॉब शेड्यूलिंग, पैरलल प्रोसेसिंग और मल्टी थ्रेडिंग जैसे जटिल विषय समझाते थे, तो ऐसा लगता था कि ये सारी कॉम्प्लेक्स प्रोसेसिंग तो रोली और हेमा रोज करती है।




बच्चे से लेकर बापू तक और गुड्डू भाई से लेकर मल्लू भाई तक ...रोली और हेमा की फ़ील्डिंग तो सब करते थे, पर इस बात को एक्सेप्ट कोई नहीं करता था। कॉलोनी की साइड सेकेंड फ्लोर के जितने भी रूम थे, इनमें रहने वाले लड़के इस बात से ख़ासे परेशान रहते थे कि कोई न कोई किसी न किसी बहाने इनके रूम में आता रहता था। जैसे पानी पीने के लिए ..जबकि खुद के रूम में मटका रखा है, या ये मालूम होते हुए भी कि प्रेस इस रूम में नहीं है, फिर भी प्रेस मांगने ..या नहाना है नहीं, पर बाल्टी-मग्गा माँगने आ गए औऱ कुछ नहीं तो निहायत ही अन-नेसेसरी "और @&%के क्या चल रहा है?" कह कर कमरे में एंट्री की और खिड़की से बाहर ताड़ने लगे। रोली या हेमा दिख गई तो रुक गये नहीं तो जिसका रूम है, उसी को "अबे पढ़ ले @#$%के, ये रोली और हेमा के चक्कर में &$#या कट जाएगा तेरा" ऐसा ज्ञान देकर निकल गए। गुड्डू भाई ने तो अपना पानी का मटका अपने कमरे से निकल कर बाहर कॉरीडोर में ही रखवा दिया था, पर झाँकने के लिए उनके रूम में आने वालों में कोई कमी नहीं आई।


एक दिन लेट आफ्टरनून में हम लोग हॉस्टल की छत पर खड़े बातें कर रहे थे। वहीं छत के अलग-अलग कोनों में कुछ लड़के रोली और हेमा पर एंगल सेट किए अपनी क्लेंडेस्टिन साधना में व्यस्त थे। तभी हम सब की नज़र एक दुबले-पतले साउथ इंडियन सर पर पड़ी। वो पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे थे, और रहते एम. ई. हॉस्टल में थे। उन्हें हमारे हॉस्टल की छत पर टहलते देख कर कुछ डाउटफुल सा लगा। कहते है न कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपता, फिर हॉस्टल में तो वैसे भी कुछ भी सीक्रेट नहीं रह पाता। डी. एच. ने उनका सीक्रेट खोला "अबे ये &%$# रोली के दीवाने है, और उसी के चक्कर में इस हॉस्टल की छत पर टँगे रहते है"। इतना सुनते ही हम लोगों ने टाइमपास करने के लिए उनको छत पर ही रंगेहाथों धर लिया। सर बहुत सेंटी हो कर बोलने लगे "गॉड प्रॉमिस ..में तुमको सच्ची बोल रहा है ..ये रोली है ना ...ये मेर्री लाईफ़ में आने वाला ... फर्स्ट लड़की .."। इतना कहते कहते उनका गला भर आया। हम लोगों को लगा कि हमारे सामने 'एक दूजे के लिए' मूवी का कमल हासन खड़ा है। हम लोग सोच ही रहे थे कि इनके इश्क का बुख़ार उतारने का क्या डीसेंट तरीका हो सकता है? क्योंकि बी.ई. भले ही उन्होंने किसी ओर कॉलेज के की थी पर वो सीनियर जैसे ही थे। तभी बावा ने उनके कन्धे पर हाथ रखा, और काफ़ी गम्भीर आवाज में समझाया "देखो सर, ये जो रोली है ना ..ये भले ही तुम्हारी लाईफ़ में आने वाली पहली लड़की है, पर इसकी लाइफ़ में हर साल हॉस्टल के 100 नये लड़के आ कर चले जाते है"। ऐसा सुनते ही उन साउथ इंडियन सर को आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई, और वो एनलाइटेड़ होकर मटीरियलिस्टिक फीलिंग्स से स्पिरिचुअल अवेयरनेस की ओर मुड़ गए। उनका मन आशिक़ी के मकड़जाल से मुक्त हो गया। अपने इस वन साइडेड प्यार को उन्होंने वहीं छोड़ दिया और फिर कभी हमारे हॉस्टल की छत पर नहीं दिखे।


साउथ इंडियन सर के मैटर को निपटाने के बाद हम लोग अपनी बकर में व्यस्त हो गए। ऊपर आसमान में काले बादल घिरने लगे और ऐसा लगा कि बारिश हो सकती है। "लगता है @#$@, .. आज मौसम बेईमान है" गुड्डू भाई ने आसमान की ओर देखकर अपनी छाती के बाल खुजलाते हुए स्पेशल टिप्पणी की। तभी रोली अपने घर की छत पर आ गई। बारिश के आने का चांस देखकर वो छत पर सूख रहे कपड़े समेटने आयी थी। लड़के उसे देख कर हो-हल्ला और शोर-शराबा करने लगे। एंगल सेट कर अपनी गुप्त साधना में लगे आशिकों को लड़को की ये हरकत कतई अच्छा नहीं लगी, पर वो सारे मन मसोस कर रह गए। हो-हल्ले के बीच रोली ने मुस्कुराते हुए इस अवेयरनेस के साथ कि सभी उसी को देखकर हल्ला कर रहे है, वायर पर टंगे कपड़े समेटना शुरु किया ही था कि तभी एक अनएक्सपेक्टेड घटना हुई।


एक अधेड़ उम्र का आदमी, जिसकी हाइट 5 फुट से कम ही होगी, वो रोली की छत पर आया और हॉस्टल की ओर घूरते हुए अपने हाँथों की आल्थी-पाल्थी अपने सीने के सामने बांध कर खड़ा हो गया। अधिकांश लड़के पहचान नहीं सके कि ये है कौन। जैसे हॉलीवुड की फिल्मों में हीरो "गेट डाउन, गेट डाउन .. इट्स अ बॉम" बोल के कूदकर लेट जाता है, और बाकी लोग भी सेफ्टी के लिए ज़मीन पर लेट जाते है, उसी प्रकार भरदु अंकल चिल्लाए "अबेsss ये तो अपने कॉलेज का प्रोफेसर हैss" और झुक कर मुंडेर के पीछे छुप गए। हॉस्टल की छत पर जो जहाँ खड़ा था, वहीं खुद को सेफ करने के लिए लेट गया। किसी ट्रेंड कमांडोज़ की तरह सभी रेंगते हुए स्टेयर्स की और खिसकने लगे। बहुत ही कम समय में छत खाली हो गई और लड़के स्टेयर्स के कवर्ड लैंडिंग एरिया में आकर बातें करने लगे। देवा ने पुछा "किस डिपार्टमेंट का है?" भरदु, बच्चा और मैं एक साथ बोले "हमारे!"। बावा ने शक दूर करने के लिए काउंटर मारा "खा मेरी कसम" .. बच्चे ने तुरंत बावा  के सिर पर हाथ रख कर कहा "तेरी कसम"। इंडिया में उस समय तक सच-झूठ का पता इसी साइंटिफिक तरीके से किया जाता था। उधर प्रोफ़ेसर साब रोली की छत पर विनिंग एक्सप्रेशन के साथ खड़े थे, पर लड़के भी हार मानने के मूड में नहीं थे। पारा बोला "अबे चद्दर टॉवेल लपेट के चलते है छत पर, उसको कुछ नहीं समझ आएगा"। सभी लड़के सेकेंड फ्लोर के कमरों से चद्दर, टॉवेल, गमछा, पर्दा, टेबल क्लॉथ जो मिला वो उठा लाये और अपने मुँह पर लपेटने लगे। सभी को रेडी देख कर पेंकी रामायण/महाभारत सीरियल की स्टाइल में बोला "आsssक्रमsssssण"। सभी लड़के "होsss ..आइ आइ जीएसटीआइ" करते हुए छत पर आकर खड़े हो गए। प्रोफ़ेसर साब चकरघिन्नी हो गए। किसी की चादर या टॉवेल देख कर उसे पहचान पाना, यह डिटेक्टिव स्किल केवल हॉस्टल के धोबी राजू के पास ही हो सकता था। हम लोग बिंदास होकर प्रोफेसर साब के सामने खड़े रहे। प्रोफेसर साब ने एक-दो लड़को को पहचानने की असफ़ल कोशिश की, फिर गेम हाथ से फ़िसलता देखकर भारत में गली-मोहल्लों की स्थापित परंपरा "जे बेमण्टाई है, हम नई खेल लए" के हिसाब से  प्रोफेसर साब वापिस चले गए। 



द स्वॉशबकलर्स

प्रोफ़ेसर साब के जाने के बाद हमलोग आपस में तरह तरह के क़यास लगाने लगे कि ये छत पर क्यों आए? किसी ने शिकायत तो नहीं की होगी? रोली के ये रिश्तेदार है क्या?। ये सब बकर चल ही रही थी कि हेमा ने लड़कों की ओर देखते हुए अपने घर के बैकयार्ड से एक कागज़ को फोल्ड करके हॉस्टल की तरफ़ फेंका। कागज़ बहुत ही ईमानदारी से एरोडायनामिक्स के रूल्स फॉलो करते हुए यथाशक्ति उड़ा, लेकिन बाउण्ड्री वॉल तक आकर हाँफने लगा, तभी बरनूली की आत्मा ने थोड़ा प्रेशर मारा तो वो हिम्मत दिखाते हुए बाउण्ड्री वॉल पार कर हॉस्टल की तरफ बढ़ा ही था कि न्यूटन ने अपना ग्रेविटेशनल लॉ प्रूफ करने के चक्कर में उस कागज़ की सारी शक्तियां छीन ली। बरनूली और न्यूटन के इस सुपिरियोरिटी कॉन्फ्लिक्ट को बैलेंस करते हुए कागज़ ने टर्मिलन वेलोसिटी मेंटेन की और लहराता हुआ हॉस्टल की बाउण्ड्री वॉल के जस्ट अंदर आकर औंधेमुँह गिर पड़ा।


हेमा ये कन्फ़र्म करने के बाद कि लड़कों ने ये देख लिया है कि उसने कागज फेंका है, वो अपने घर के अंदर चली गई। इधर हॉस्टल की छत पर माहौल गरमा गया। शिप्पू उचक कर छत की मुंडेर के एक दम पास गया और चीनियों टाइप आँखें छोटी कर उस कागज़ पर फोकस डाल के बोला "ओ ^&%$!! मुझे लग रहा है ^%*$# लेटर फेंका है, लेटर"। छत पर खड़े बाकि लड़कों को क्या लग रहा है? यह देखने के लिए जब शिप्पू पीछे मुड़ा, तो सारे लड़के गायब थे। स्टेयर्स की तरफ़ से लड़कों के नीचे उतरने की आवाजें आ रही थी। "अबे @&%$ $# मेरे लिए रुको" ऐसा चिल्लाते हुए शिप्पू भी स्टेयर्स की ओर भागा। ग्राउण्ड फ्लोर पर मेस की तरफ उतरती एल-शेप्ड वाली हाफ-टर्न स्टेयर्स से लड़के धड़धड़ाते हुए सेकेंड फ्लोर क्रॉस कर फर्स्ट फ्लोर पर आ गए, फिर कुछ लड़के आगे ग्राउण्ड फ्लोर की ओर उतर ही रहे थे कि गोलू चिल्लाया "अबे $%&# नीचे जा के क्या करोगे?"। पारा, जो तब तक ग्राउण्ड फ्लोर पर पहुँच चुका था, उसने जवाब दिया "अबे $#@ कुएं के पास से 1# हॉस्टल की बैक साइड से होते हुए जाएंगे न बे"। सारे लड़के इस क्रिटिकल डिसीजन के इंतज़ार में अपनी-अपनी जगह रुक गए। गोलू अपनी हथेली पर हथेली पटक कर बोला "अबे &%$*# उधर झाड़-झंखाड़ फैला है, उधर से जाने का रास्ता नहीं है @#$% वालों"। Jonti ने गोलू की बात से सहमत होकर मुंडी हिलाई। देवा अपने पार्टनर पारा के प्लान से सहमत था। बाकि लड़के कन्फ्यूज़्ड होकर कभी पारा तो कभी गोलू की ओर देख रहे थे। "वां से जाने की जघे नइऐ, इसकी @# का &%$# .. वां पोंचने में भोत मगज़मारी ऐ भिआ" कान में फंसे बिना ढक्कन के डॉट-पेन को एडजस्ट करते हुए मेस के पास खड़े राजू धोबी ने सबका कन्फ्यूजन दूर किया। अब सब लड़के वापस से फर्स्ट फ्लोर पर आ गए। 


फर्स्ट फ्लोर पर कॉलोनी की ओर मेस और किचन के ऊपर छोटी छत थी। सभी लड़के कॉरिडोर में दौड़ते हुए उस छत पर पहुंच गए। इस छत का राइट कॉर्नर उस पॉइंट के पास था जहाँ वो कागज़ लेंड किया था। सभी लड़के उसी कॉर्नर की साइड आ गए। नीचे बाउण्ड्री वॉल के पास की जगह स्कैन करते के बाद लाला ने अपनी आँखे मिचमीचाई और बोला "अबे &%$# व्व्वो कग्गज कौन सा था जो रोली ने फ़ेंफेंका था"। वहां नीचे  बहुत से कागज़ के टुकड़े और कचरा फैला हुआ था। जॉन्टी बोला "अबे यहां से कैसे अंदाज़ा लगाओगे @#$%#, नीचे उतर के जाएंगे तो ढूंढने पे मिल जाएगा न"। गुड्डू भाई ने तुरन्त "जो बोले, किवाड़ खोले" इस रूल को अप्लाई करते हुए बोला "हट जाओ, हट जाओ .. जॉन्टी उतर रहा है नीचे"। सभी लड़कों ने बिना देर किए जॉन्टी के नाम का अनुमोदन कर दिया और सब तरफ़ से "जा जॉन्टी जा" टाइप्स की आवाजें आने लगी। फर्स्ट फ्लोर की उस छत से बिना सीढ़ी के नीचे उतरना आसान नहीं था। छत करीब 12 फुट ऊँची थी, नीचे गंदगी और कीचड़ था। शाम भी होने को थी तो हल्का अंधेरा भी उतरने सा लगा था। देवा और पारा की जोड़ी ने साइंटिफिक केलकुलेशन के साथ समझाया "देखो, ये नीचे किचन की खिड़की पर जो छज्जा है न, पहले उस पर उतरो .. देट इज अप्रोक्सीमेटली 5 फ़ीट डाउन ...उसके बाद नीचे बचा 7 फ़ीट .. तो उतना तो आसानी से जम्प कर सकते है"। जॉन्टी बोला "हाँ, तो तूम कूद जाओ न @#$&के"। इतना सुनते ही जैसे शातिर बैट्समैन बाउंसर का अंदाजा लगा कर झुक कर नीचे बैठ जाते है, उसी प्रकार पारा नीचे झुका और बैठ कर जूते के बंधे-बंधाए फीते खोल कर फिर से बाँधने लगा। देवा ने तुरन्त अपनी कलाई गोल-मोल घुमाई और बोला "कल डम्बल्स करते समय रिस्ट में क्रैम्प आ गया मेरे"। 


मामला ढ़ीला पड़ते देख बावा ने अपने एडम्स एप्पल को छुआ और जॉन्टी को उचकाया "कसम से .. वो लेटर ही है"। बावा की ये बात सुनकर पेंकी और लाला एक दूसरे की ओर देखकर शातिराना अंदाज़ में मुस्कुराए। छत पर एक बार फिर से "जा जॉन्टी जा" का माहौल बन गया। जॉन्टी ने उस दिन अपनी नई बेलबॉटम जीन्स पहन रखी थी और पैरों में एंकल बूट्स जिन्हें हमलोग उस समय अपनी समझ के हिसाब से हाई-नेक के जूते बोलते थे। जॉन्टी नीचे गंदगी में उतरने के मूड में बिल्कुल नहीं था। पर लड़कों के प्रेशर के कारण, और शायद बावा  की क़सम के कारण इस मुग़ालते में कि वो लेटर ही फेंका गया है, जॉन्टी अनमने मन से छत की मुंडेर पर चढ़ गया। बाउण्ड्री वॉल की ओर पीठ कर के उसने दोनों हाथों से मुंडेर पकड़ी और पैर नीचे की तरफ़ लटका दिए। एक बार नीचे छज्जे की ओर देख कर जॉन्टी ने अपना कैलकुलेशन लगाया और धीरे से छज्जे पर उतर गया। "बहुत सही" ऊपर से बावा ने जॉन्टी को एनकरेज किया। हाथों पर लगी धूल और चूना झाड़ने के लिए जॉन्टी ने ताली टाइप्स बजाई, तो छत पर खड़े बाकि लड़कों ने भी तालियाँ बजा दी। शाम ढल सी रही थी और अंधेरा घिरने लगा था। जॉन्टी छज्जे से नीचे कूदने में झिझक रहा था, पर तालियों की आवाज सुनकर हेमा ने अपने कमरे की खिड़की से झाँका और सभी की ओर एक फ्लर्टेशस स्माइल देकर खिड़की को पर्दे से बन्द कर दिया। अब उस कागज़ के बारे में किसी के भी मन में कोई डाउट नहीं रह गया। अपने मन को पक्का कर जॉन्टी नीचे लैंडिंग के लिए सूटेबल ग्राउण्ड ढूँढ़ने लगा। शाम की ढ़लती रोशनी में लंबी घास, घुटने तक की झाड़ियां, सीवरेज का पानी, उस पानी में उठते बुलबुले, बुलबुलों से बचकर तैरते कीड़े, भिनभिनाते मच्छर, कीचड़, कचरा-कूड़ा, बिल्डिंग मटेरियल का मलबा, अद्धे-पऊऐ की बोतलें, सायकिल का टायर, दूध के खाली पाउच, कपड़ों की चिन्दियाँ, पॉलीथिन, फ़टे जूते .. ऐसा बहुत कुछ नीचे जॉन्टी को दिख रहा था। इन सब के बीच जॉन्टी से एक ड्राय स्पॉट सिलेक्ट किया और कूद गया।


जॉन्टी के ज़मीन पर लैंड करते ही भूचाल सा आ गया। जिस छज्जे से जॉन्टी कूदा था, उसके ठीक नीचे हॉस्टल के किचन की दीवार के सहारे दो दर्जन हट्टे-कट्टे सूअरों का कुनबा रिलैक्स कर रहा था। जॉन्टी के धम्म से कूदते ही सूअर दचक गए और सूअरों की भगदड़ से जॉन्टी घबरा गया। सूअरों के उस झुंड का सूमो रेसलर टाइप विशालकाय सरदार, उसकी लेब्लॉ ट्रेडिशन से बिल्ड 2-3 महा-बलिष्ठ पत्नियाँ, उनके प्ले-स्कूल से कॉलेज गोइंग रेंज के 15-20 बच्चे .. ये सब के सब एक साथ अफ़रातफ़री में ओंक-ओंक ढुर्र-ढुर्र की आवाज में चीख़ते-चिल्लाते इधर-उधर भागे। अचानक हुए इस हादसे में झुंड के अधिकतर सूअर डिसओरिएंटेड से होकर आपस में, हॉस्टल की दीवार से, बाउण्ड्री वॉल से,  जॉन्टी से टकराते और रगड़ खाते हुए भभ्भड़ मचाने लगे। कुछ देर के लिए ये सारे जन्तु एक अज़ीब से साइक्लिक लूप में फँस गए थे ... सुअरों के हैवी ड्यूटी सरदार को देख कर जॉन्टी डर रहा था, जॉन्टी से उस झुंड की सारी लेडीज़ डर रही थी, लेडीज़ की इस "बचाओ! बचाओ!!" वाली भगदड़ से उनके बच्चे डर रहे थे और बच्चों की चिल्ल-पों वाली चीत्कारों से खुद झुंड का सरदार डर रहा था। इस इटरेटिव लबड़-धौं-धौं से चारों तरफ फैले कीचड़ में सूअरों की धमचक इंटेन्स होती जा रही थी और उनके बीच बेचारा जॉन्टी अपने दोनों हाथ छाती पर बांध कर ऑस्कर वाली ट्रॉफी बना खड़ा "हssट ..हsssट" चिल्ला रहा था। सूअरों का ग्राउण्ड क्लियरेंस बाय डिफॉल्ट कम ही होता है और इसपर सीवर के पानी वाले कीचड़ में बैठे होने के कारण सभी गोलमटोल सूअरों का नीचे की तरफ़ सदर्न हेमिस्फीयर बदबूदार कीचड़ से गीला होकर शाइन मार रहा था और वो सारे इसी कीचड़ के असँख्य छीटें उड़ाते हुए थोड़ी देर में तितर-बितर हो गये। जॉन्टी कीचड़ में सन चुका था। उसने ऊपर छत की ओर देखा तो वहाँ खड़े लड़के अब लेटर की बात भूल कर हँसते हुए इस हंगामें का मजा लेने लगे थे। सूअरों की इस स्टेमपीड़ में हेमा ने फेंका हुआ कागज़ कहाँ चला गया ये पता ही नहीं चला। जॉन्टी थोड़ी देर हतप्रभ सा खड़ा रहा। सुअर के कुछ बच्चे जो कन्फ्यूज़्ड होकर झुंड से अपोजिट डाइरेक्शन में चले गए थे, अचानक से वो ढुर्रsss-ढुsssर्र की आवाज में चिल्लाते हुए बुलट ट्रेन की तरह वापस आए और जॉन्टी के जस्ट आजू-बाजू से हो कर अपने कुनबे की दिशा में भाग गए। जैसे आसमान में बिज़ली चमकती पहले है और गड़गड़ाहट बाद में सुनाई देती है, उसी तरह सुअरों के पास हो जाने के बाद जॉन्टी के फिर से घबराकर "हssट ..हsssट" चिल्लाने की आवाज आयी। 



हो-हल्ला सुन कर हेमा ने इस बार दरवाज़े पर आकर झाँका और ओवरऑल सीन देख कर जेन्युइन डू-शेन स्माइल के साथ छत पर खड़े लड़कों और जॉन्टी की ओर देखा, फिर अपनी आदत के हिसाब से सारी खिड़कियों की ओर देखा-पर-नहीं-देखा वाली नज़र फेर कर वो अंदर चली गई। इधर जॉन्टी ने जब वापिस छत पर जाने का सोचा तो उसे समझ आया कि लटक कर 7 फुट ऊंचे छज्जे पर चढ़ने का ऑप्शन आसान नहीं है। तभी लाला ने जॉन्टी को याद दिलाया "अबे जॉन्टीsss, वो कग्गज तो ढूंढ" .. जॉन्टी ने बिदककर छत पर खड़े लडकों की ओर देख कर  फुल वॉल्यूम में धाराप्रवाह गालियों की बौछार कर दी। गालियाँ सुनकर हेमा ने फिर दरवाज़े से झाँका, तो छत पर खड़े सभी लोग जॉन्टी की ओर ऐसे एक्सप्रेशन से देखने लगे कि शरीफ़ों के मोहल्ले में ये किस टाइप की हरकतें कर रहे हो। हेमा को देखकर जॉन्टी भी साइलेंट हो गया और फिर वो उस कीचड़ और झाड़ियों में होकर हॉस्टल के पीछे से चलता हुआ देवा-पारा के सुझाए रास्ते से कुँए तक आया और फिर हमारे हॉस्टल के अंदर आ गया। 


फर्स्ट फ्लोर वाली छत पर खड़े लड़के अब स्टेयर्स के पास जॉन्टी के ऊपर आने का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही जॉन्टी जीने चढ़कर फर्स्ट फ्लोर पर आया, सभी लोग ठहाके लगा कर हँसे। जॉन्टी को चिढ़ाते हुए बच्चे ने गबालियर वाले ख़ालिस देसीपन से अपने दोनों हाथों की मिडिल फिंगर को इन्डेक्स फिंगर पर चढ़ा लिया और बोला "अंटी बांध लो बे सब .. अंटी बांध लो" ... बब्बा ने भी मुरैना स्टाइल में बचपन की याद ताज़ा करते हुए अपनी उंगलियां क्रॉस करके दोनों हाथ ऊपर उठाए और बोला "भगवान, मेरी अंटी ले ले .. सोने की अंटी दे दे"। पेंकी ने जॉन्टी को चिढ़ाया "अबे गेलिए! गटर में से ना-धो के आ रिआ है"। कीचड़ में सना जॉन्टी झल्लाकर "तुम्हारी @# का &%$#@" ऐसा बोल कर सबको छूने भागा ..सब लड़के इधर-उधर भगे ..कोई सेकेंड फ्लोर चला गया ..कुछ ग्राउण्ड फ्लोर भाग गए, तो कुछ लोग #1 हॉस्टल की तरफ चले गए और 1-2 लोग फर्स्ट फ्लोर पर ही किसी के रूम में घुस गए। जॉन्टी स्टेयर्स चढ़ कर सेकेंड फ्लोर पर आ गया और नहाने चला गया। 


पील द ऑनियन

थोड़ी ही देर बाद सब लड़के अपने हाइड आउट से निकल कर जॉन्टी के रूम में बकर करने पहुंच गए। न हेमा की बात निकली, न उसकी फेंके हुए कागज़ के टुकड़े की। सभी बात कर रहे थे तो सुअर फैमिली में मची भगदड़ की और उनके बीच में फंसे जॉन्टी की। जैसे इंडियन लोग मूवी देख कर लौटते समय मूवी के एक-एक करेक्टर की और सीन्स की बात करते हुए पूरी मूवी की स्टोरी ही रिपीट कर देते है, उसी तरह लड़के बात कर रहे थे "वो वाला सीन सही था जब जॉन्टी ने जम्प लगाई.." .. "वो छोटू सूअर बड़े वाले सुअर के नीचे से निकल गया ..." पेंकी ने सभी को मेंन मुद्दे की ओर वापिस डायवर्ट किया "हेमा ने जो कागज फेंका वो किसके लिए था?" ...नहाए-धोए जॉन्टी ने डिटेच्ड़ भाव से कहा "तेल लेने गया लेटर ..तुम लोगों के चक्कर में मैं फालतू कूद पड़ा"। बावा ने फिर से अपने एडम्स एप्पल को छूआ और बोला "तेरी कसम! वो था तो लेटर ही ..तूने देखा नहीं हेमा किस टाइप से हँस के गई"। लड़के फिर से उस लेटर के बारे में बात करने लगे। डीएच ने सुझाव दिया "अबे रोली और हेमा सुबह कॉलेज जाती है उस टाइम रोक के पूछ लेना"। दद्दू ने एल्डरली एडवाइज दी "अबे, अब पीएल लगने वाली है, पढ़-लिख लो ..नहीं तो @# लग जाएंगे" ... अब कल की कल देखेंगे .. इस रेसोल्यूशन के साथ बकर विसर्जित हो गई।


अगले दिन सुबह-सुबह जॉन्टी मेरे रूम पर आया "ओय, चाय पीने चल रहा है?"। लगभग सवा सात बज रहे थे, रोली-हेमा के कॉलेज जाने का टाइम ये ही था। कल के घटनाक्रम को याद करके मैं जॉनी लीवर टाइप "अब आएगा ना मजा भिड़ूsss" सोच कर तुरन्त रेडी हो गया। लेन्टर्न चौराहे पर ज़हूर भाई की दुकान पर चाय पीते हुए हम दोनों मालवा मील की तरफ़ नज़रें लगाए दो राउंड चाय पी गए ..हल्का-हल्का प्रेशर सा बनने लगा .. पर रोली/हेमा नहीं दिखी। 8 बजने को आ गए थे, तो हमने एक-एक पोहा खरीदा और खाते-खाते वापिस हॉस्टल आ गए। रूम की खिड़की से झाँका तो रोली और हेमा अपने-अपने घर पर ही थी। रूम पार्टनर बड़े ने याद दिलाया, आज तो छुट्टी है। दिनभर में कई बार उस कागज़ की बात निकली, पर उसमें था क्या, ये किसी को नहीं पता था।


अगले दिन सुबह बावा और जॉन्टी मिशन पर निकले। ज़हूर की दुकान पर दोनों ने पोजीशन ले ली। तभी लेन्टर्न चौराहे पर मालवा मील की ओर से आ रहा ऑटो, खेल प्रशाल वाली साइड से आ रही एक काइनेटिक से टकरा गया ...चींsssss ठपाssक ..की आवाज ने सबका ध्यान खींचा। कई लोग स्पॉट की ओर दौड़े .. जॉन्टी और बावा भी ग्राउंड ज़ीरो पर आ गए। काइनेटिक एक लड़की की थी, तो सभी लोग बिना कुछ सोचे ऑटो वाले पर बरसने लगे। "भोत्तेज चल्लीया ऐं" ... "ये आटो वाले अंडशंड पेलतेऐं .. इस्की बारा की ढ़ेर" .. "चोराए पे सिलो कन्ना चईये कि नई?" .. "नजाने पाइलट कांकां से आजाते ऐं" ऐसी आवाजें उस लड़की के पक्ष में आने लगी। ऑटो वाला जिसके हाथ में बीड़ी जल रही थी वो बोला "भिआ मे सिलोई था, हाथ मे अगनि लेके ..सुबे-सुबे जूट नि बोल रिआ कसम्से" ... लड़की कह भी रही थी कि वो ब्रेक नहीं लगा पाई पर कोई उसकी सुन ही नहीं रहा था। तभी एक ख़लीफ़ा ने फ़ाइनल वर्डिक्ट दिया "जान्दे एबले .. सित्तने से मेडम को सुआरी बोल और मैटर किलोज कर"। सुआरी ये शब्द सुन कर जॉन्टी और बावा को हँसी आ गई और साथ में कल की सूअर वाली घटना याद आ गई, फिर सूअर से हेमा .. और हेमा से उसका फेंंका हुआ  काग़ज ..और फाइनली कागज़ से ये याद आया कि अपन यहां आये क्यों है। दोनों ने तुरन्त पलट कर मालवा मील वाले डायरेक्शन में देखा ..तो रोली और हेमा उसी टाइम अपनी लूना पर लेन्टर्न चौराहा पार कर के मोनिका गेलेक्सी की ओर निकल गई। अपॉर्च्युनिटी जस्ट मिस्ड! .. दोई जने वापिस हॉस्टल आ गए। उस कागज़ को लेकर क्यूरियोसिटी बढ़ती जा रही थी।



अगले दिन मैं और जॉन्टी सुबह 7 बजे के आसपास हॉस्टल से निकले। मैंने जॉन्टी को सलाह दी "अबे ज़हूर की दुकान पे 2 दिन से @#$ कट रा हे, आज भां नई जान्गे"। जॉन्टी सहमत हो गया। हम दोनों यशवंत निवास रोड़ वाले गेट से बाहर निकल कर सड़क के किनारे खड़े हो गए। इसी रोड़ पर आगे मालवा मील की तरफ़ जीएच और स्टाफ़ क्वार्टर वाला गेट था। रोली और हेमा इसी तरफ से ही आने वाली थी। इसलिए हम लोग उसी डाइरेक्शन में देखते हुए खड़े थे। तभी वहॉं स्पोर्ट्स टीचर चंद्रावत सर आ गए। उनकी उम्र 60 के आसपास थी शायद ...सिर पर क्रिकेट वाला सफेद गोल हैट .. मोटी फ्रेम का चश्मा ..  बुलट प्रूफ ग्लास जितने थिक चश्में के लेंस .. चश्मा गिर न जाए इसलिए उसमें लटकती फेब्रिक डोरी, फ़ौजी स्टाइल की घड़ी में सवा-नौ बजाती स्प्लिट मूछें, मल्टी पॉकेट वाली बीज़ कलर की फ़ोटोग्राफ़र वेस्ट, स्पोर्ट शूज़ और हाथ में 2-3 फ़ाइलें। ये चंद्रावत सर का परमानेंट लुक था। "बॉयज़!! क्या चल रहा है?" चंद्रावत सर ने आते ही पूछा। जॉन्टी ने जानबूझकर लेन्टर्न चौराहे की ओर इशारा करते हुए बोला "सर, वो एक ..दोस्त आ रहा है ..उसका वेट कर रहे है"। चंद्रावत सर शायद आते समय हमदोनों को ऑब्ज़र्वर करते हुए आए थे, उन्होंने मालवा मील के डायरेक्शन में इशारा करते हुए पूछा "या इधर से आ रहा है?"। हम दोनों ही झेंप गए। इससे पहले कि हम कुछ कह पाते, चंद्रावत सर बोलने लगे "यू मस्ट टेल सुमित .. उसको बोलो ...वो क्रिकेट का किट .. वापस जमा नहीं कराया है अभी तक ... वी नीड एवरीथिंग बैक .. टूटा हुआ चलेगा ...यू गेटिंग इट? .. पर सामान पूरा रिटर्न करना होता है ..और वो सर्टिफिकेट ..."। इधर वो अपने पेंडिंग आयटम गिनाते जा रहे थे, उधर रोली और हेमा हमारे सामने से निकल गयी। कागज़ के बारे में पता करने की आज की कोशिश भी फुस्स हो गई। जैसे तैसे चंद्रावत सर से पिंड छुडा कर हम हॉस्टल वापिस आ गये।


नेक्स्ट डे से पीएल लग गयी। भोपाल, देवास, उज्जैन के लड़के घर चले गये। हॉस्टल में भी पढाई, नोट्स, सबमिशन का माहौल बनने लगा। जैसा की हर साल ट्रेडीशन सा बन गया था, इस बार भी पीएल में पंगा हुआ। पीएल के शुरुआती दिनों में ही हाफ़ मालवा पर पोहे की दुकान पर रट्टा हो गया था। वॉर्डन सर और तुकोगंज थाने  के चक्कर लगाने में 2-4 दिन निकल गए, तब जाकर मामला रफ़ा-दफ़ा हो पाया। फिर पीएल के माहौल में उस कागज़ की बात नहीं निकली। वो वाक़ई में लेटर था, या वैसे ही फेंका हुआ कोई कागज़ ..उसमें कुछ लिखा भी था या कोरा था ... किसी स्पेसिफिक लड़के के लिए था या जनरल था .. ये सब रहस्य ही बना रहा क्योंकि एक्ज़ाम के बाद हम लोग फायनल ईयर हॉस्टल में शिफ्ट हो गये ..और रोली/हेमा की लाइफ़ में अब जूनियर बैच के नये 100 लड़के आ गए ..


अब उम्र के इस पड़ाव पर जब पीछे मुड़कर देखते है, तो अपनी ही ये सारी हरकतें किसी चिरकुटपने से कम नहीं लगती। उस ज़माने में इंटरनेट, लेपटॉप अवेलेबल नहीं था, स्मार्टफोन तो दूर की बात थी कीपैड वाला मोबाइल तक नहीं था। यहॉं तक कि हमारे बैच में किसी हॉस्टलर के पास बाइक तक नहीं थी। बब्बा के पास एक पुराना बजाज प्रिया स्कूटर था ओर लाला के पास एक पुराने मॉडल की ऊपर-नीचे सीट वाली लूना। क्रिकेट मैच के अलावा टीवी हॉल में कोई घुसता नहीं था। लेकिन इन सब चिरकुट टाइप हरकतों के कारण उस समय हॉस्टल की जिंदगी में कभी नैटफ्लिक्स, हॉटस्टार,  व्हाट्सएप, फेसबुक, कैंडी क्रश या पब्जी की जरूरत महसूस ही नहीं हुई।


Disclaimer

This is a work of fiction. Names, characters, places and incidents either are products of the author's imagination or are used fictitiously. Any resemblance to actual events or locales or persons, living or dead, is entirely coincidental.

Comments

  1. Really, someone should made movie on the experiences of our hostel days.... truly hilarious

    ReplyDelete
  2. जब ठरकी चेतन भगत के अंदर के पी सक्सेना, शैल चतुर्वेदी और अशोक चक्रधर जैसी पवित्र आत्माओं का प्रवेश होता है तो ऐसी क्लासिक रचनाओं की कृति होती है।

    @#₹_& रहो !!!!

    ReplyDelete
  3. सुअरों का ground clearance by default कम ही होता है. 👌
    doesn't get any better then this..

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

बापट पुराण

बापू की चप्पल